माँ संतोषी की अनोखी लीला
माँ संतोषी को संतोष, श्रद्धा और विश्वास की देवी कहा जाता है। उनकी लीला अत्यंत सरल होते हुए भी गूढ़ है। वे अपने भक्तों से न तो बड़े यज्ञ की अपेक्षा करती हैं, न ही दिखावे की पूजा की—बस सच्चा मन, संयम और संतोष ही उनका प्रिय भोग है। उनकी अनोखी लीला इसी सत्य को बार-बार सिद्ध करती है।
प्रारंभिक कथा
प्राचीन काल की बात है। एक नगर में एक निर्धन किंतु अत्यंत श्रद्धालु स्त्री रहती थी। उसका जीवन कष्टों से भरा था—घर में धन का अभाव, परिवार में कलह और स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था। फिर भी वह स्त्री सदैव दूसरों से मधुर व्यवहार करती और जो मिलता, उसी में संतोष कर लेती।
एक दिन किसी साधु ने उसे माँ संतोषी के शुक्रवार व्रत के बारे में बताया और कहा—
“माँ को केवल श्रद्धा चाहिए। खट्टे पदार्थ त्याग कर यदि सोलह शुक्रवार व्रत किया जाए, तो वे अवश्य कृपा करती हैं।”
व्रत की कठिन परीक्षा
स्त्री ने पूरे नियम-विधान से व्रत प्रारंभ किया। हर शुक्रवार गुड़-चना का भोग, सच्चे मन से कथा श्रवण और खट्टे पदार्थों का पूर्ण त्याग। लेकिन माँ की लीला आसान नहीं थी। व्रत के दौरान उस स्त्री पर अनेक परीक्षाएँ आईं—
- घर में अचानक धन की और कमी हो गई
- परिवार के लोग उसका उपहास करने लगे
- कई बार उसे भूखा रहना पड़ा
- खट्टा भोजन सामने रख कर उसे विचलित किया गया
परंतु वह स्त्री विचलित नहीं हुई। वह हर संकट में बस यही कहती—
“माँ, जो भी तुम्हारी इच्छा हो, वही स्वीकार है।”
माँ की अनोखी लीला का प्रकट होना
जब सोलहवाँ शुक्रवार आया, उस दिन स्त्री ने अत्यंत भाव से माँ को पुकारा। उसकी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी, पर मन में कोई शिकायत नहीं थी—केवल संतोष था।
तभी माँ संतोषी अपनी दिव्य रूप में प्रकट हुईं और बोलीं—
“पुत्री, तूने सच्चे अर्थों में संतोष को अपनाया है। जो मनुष्य संतोष में रहता है, वही सबसे धनी होता है।”
माँ की कृपा से—
- उसके घर में धन-धान्य की वर्षा हुई
- परिवार में प्रेम और शांति लौटी
- रोग दूर हुए
- और समाज में उसे सम्मान प्राप्त हुआ
लीला का गूढ़ संदेश
माँ संतोषी की यह अनोखी लीला हमें सिखाती है कि—
- सच्ची भक्ति दिखावे से नहीं, धैर्य से होती है
- कष्टों में भी संतोष रखना ही सबसे बड़ी साधना है
- माँ अपने भक्तों की परीक्षा अवश्य लेती हैं, पर त्यागती कभी नहीं
- व्रत का वास्तविक फल भौतिक सुख से पहले मानसिक शांति है
उपसंहार
माँ संतोषी की लीला आज भी उतनी ही जीवंत है। जो भक्त श्रद्धा, संयम और संतोष के साथ उनका स्मरण करता है, माँ उसके जीवन के अंधकार को प्रकाश में बदल देती हैं। उनकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है—यही उनकी अनोखी लीला है।
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