
माँ काली कवच के जप की विशेष विधि और मंत्र संयोजन
१. माँ काली कवच जप की विशेष विधि
समय
- सर्वोत्तम — अमावस्या, महानिशा काल (रात्रि १२ बजे के आसपास)।
- यदि यह संभव न हो, तो सुबह ब्रह्ममुहूर्त या रात १०–१२ बजे के बीच भी कर सकते हैं।
- मंगलवार, शनिवार, अष्टमी, नवमी तिथि को विशेष फल मिलता है।
स्थान व दिशा
- एकांत और पवित्र स्थान, अधिमानतः पूर्व या उत्तरमुख।
- काले या लाल वस्त्र धारण करें।
- काले आसन (कुशासन या ऊन का आसन) का प्रयोग करें।
पूर्व तैयारी
- स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।
- माँ काली की प्रतिमा/चित्र के सामने दीपक (तिल का तेल या घी) और धूप जलाएँ।
- माँ को लाल/काले फूल, विशेषकर गुड़हल, अर्पित करें।
- नैवेद्य में मिश्री, गुड़, नारियल, फल, मीठा अर्पित करें।
संकल्प
- दाहिने हाथ में जल लेकर अपना नाम, गोत्र, स्थान, और उद्देश्य बोलें। “ॐ काली मातः, मैं (अपना नाम) [फलाँ उद्देश्य] की सिद्धि हेतु आपका कवच जप संकल्पपूर्वक आरंभ करता हूँ।”
२. जप क्रम
- आवाहन मंत्र (३ बार) ॐ ऐं ह्रीं क्रीं चामुण्डायै विच्चे।
- ध्यान मंत्र (कवच के पहले दिया गया “श्यामां श्मशानवासिनीं…” पाठ १ बार)।
- माँ काली कवच पाठ — पूर्ण श्रद्धा और उच्चारण की शुद्धता के साथ ११, २१, ३१, या ११० बार, अपनी क्षमता अनुसार।
- बीज मंत्र जप —
कवच के तुरंत बाद ॐ क्रीं कालीकायै नमः मंत्र का १०८ बार जप करें।- माला: रुद्राक्ष, हकीक, या काले चंदन की माला।
- एक आसन पर बैठकर, बिना उठे पूरा जप करना।
- समर्पण — जप के बाद माता को नैवेद्य अर्पित करें और अंत में दीपक की आरती करें।
३. मंत्र संयोजन
कवच की शक्ति बढ़ाने के लिए, यह क्रम अपनाएँ:
- आदि बीज मंत्र (कवच से पहले) ॐ ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं कालीकायै नमः॥
- कवच पाठ — १ बार या इच्छानुसार संख्या में।
- मुख्य महा मंत्र (कवच के बाद) ॐ ऐं ह्रीं क्रीं चामुण्डायै विच्चे॥
— १ माला (१०८ बार) या ३ माला। - सिद्धि मंत्र (अंत में) ॐ क्रीं क्रीं क्रीं विजयवर्धिन्यै नमः॥
४. सावधानियाँ
- जप करते समय किसी से बात न करें और बीच में उठें नहीं।
- भोजन सात्त्विक और संयमित रखें।
- जप के दौरान और बाद में नकारात्मक विचार न आने दें।
- यदि अमावस्या या तंत्र साधना काल में कर रहे हैं, तो स्थान पूरी तरह से सुरक्षित और बाधारहित हो।