
महाशिवरात्रि की कथा
एक बार एक गरीब शिकारी था, जिसका नाम गुरुद्रुह था। वह जंगल में शिकार करके अपना और अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन महाशिवरात्रि के दिन, वह जंगल में शिकार की तलाश में गया, लेकिन पूरा दिन बीत गया और उसे कुछ भी नहीं मिला। भूख और थकान से व्याकुल होकर, वह एक तालाब के पास एक बेल वृक्ष पर चढ़ गया और शिकार के इंतजार में बैठ गया।
संयोगवश, उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, लेकिन शिकारी को इसका पता नहीं था। जैसे-जैसे रात गहराती गई, वह अपनी आँखें खोलने और खुद को व्यस्त रखने के लिए बेल के पत्ते तोड़कर नीचे गिराने लगा। यही नहीं, उसके पास एक पानी से भरा पात्र भी था, जिससे पानी की कुछ बूँदें शिवलिंग पर गिर गईं।
रात भर ऐसा होता रहा, और अनजाने में ही उसने शिवलिंग की जल और बेल पत्र से पूजा कर दी। वह उपवास में भी था क्योंकि उसे दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था। यह पूरी रात की उपासना और व्रत अज्ञानता में ही सही, लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न कर गई।
भगवान शिव उसके समर्पण और भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उसे वरदान दिया कि उसका जीवन धन्य हो जाएगा और वह अपने सारे पापों से मुक्त होगा। बाद में, वह शिकारी एक महान भक्त बना और सदैव भगवान शिव की आराधना करने लगा।
प्रेरणा
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति का कोई नियम नहीं होता, न ही यह जाति, धर्म या स्थिति पर निर्भर करती है। यदि व्यक्ति ईमानदारी और श्रद्धा से भगवान की आराधना करता है, तो उसका जीवन बदल सकता है। महाशिवरात्रि हमें सच्ची आस्था, संयम और समर्पण का महत्व सिखाती है, जिससे हम अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं।
“हर हर महादेव!” 🚩
महाशिवरात्रि की कथा
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