देव दीपावली: देवताओं के आगमन की पावन रात्रि
देव दीपावली: देवताओं के आगमन की पावन रात्रि
काशी नगरी का वैभव तब और बढ़ जाता है जब गंगा के तट पर दीपों की अनगिनत ज्योति जल उठती है। यह वह रात्रि होती है जब माना जाता है कि देवता स्वयं धरती पर उतरकर गंगा आरती का साक्षात दर्शन करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा की इस रात को “देव दीपावली” कहा जाता है — यह केवल प्रकाश का पर्व नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और दिव्यता का संगम है। काशी के हर घाट पर हजारों दीप जलाकर भक्तगण देवताओं का स्वागत करते हैं। इस दिन गंगा का जल स्वर्गिक आभा से दमक उठता है और पूरी नगरी एक जीवंत मंदिर बन जाती है।
देव दीपावली: लाभ, महत्व और विधि (लॉन्ग विवरण)
🕯️ परिचय :
देव दीपावली हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और भव्य पर्व है, जिसे कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह दीपावली से ठीक पंद्रह दिन बाद आती है। इस दिन ऐसा माना जाता है कि देवता स्वयं स्वर्गलोक से उतरकर काशी में गंगा तट पर दीप जलाते हैं, इसलिए इसे “देव दीपावली” अर्थात् “देवताओं की दीपावली” कहा जाता है।
वाराणसी के घाटों पर हजारों लाखों दीपों की पंक्तियाँ जलती हैं, जिनकी रौशनी से पूरी नगरी स्वर्ग जैसी आलोकित हो उठती है।
🌼 देव दीपावली का धार्मिक महत्व :
देव दीपावली का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस कारण इस दिन को “त्रिपुरारी पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
देवता इस विजय के उपलक्ष्य में काशी में आकर दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।
यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, अन्याय पर न्याय और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
यह भी माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
देव दीपावली की रात में दीप जलाने से जीवन में समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
देव दीपावली की विधि (पूजन-विधि):
- प्रातः स्नान एवं संकल्प:
कार्तिक पूर्णिमा की सुबह ब्रह्ममुहूर्त में गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
स्नान के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव का ध्यान करें और यह संकल्प लें —
“मैं आज देव दीपावली के पावन अवसर पर दीपदान कर देवताओं का स्वागत करूंगा।” - दीपदान की तैयारी:
शाम के समय घर, मंदिर, आँगन, छत और जल स्रोतों के पास घी या तिल के तेल के दीप जलाएं।
प्रत्येक दीप में कपास की बत्ती होनी चाहिए। माना जाता है कि तिल के तेल से दीप जलाने से पापों का नाश होता है। - गंगा पूजन या जल पूजन:
यदि संभव हो तो किसी नदी या सरोवर के किनारे दीप जलाकर प्रवाहित करें।
गंगा माँ या जिस जल स्रोत का पूजन कर रहे हैं, उसके सामने दीप, फूल, अक्षत, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। - भगवान शिव एवं विष्णु की आरती:
इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, और गंगा माँ की आरती करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
“ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्रों का जाप करें। - दान और सेवा:
दीपदान के साथ अन्न, वस्त्र या मिठाई का दान करना अत्यंत फलदायी होता है। यह न केवल भौतिक सुख देता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।
देव दीपावली के लाभ :
- आध्यात्मिक लाभ:
इस दिन दीपदान करने से मन में सकारात्मकता, शांति और आत्मिक बल का विकास होता है।
यह व्यक्ति के भीतर के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश जगाता है। - पुण्य की प्राप्ति:
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान करने से अनेक जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। - धन-समृद्धि का आशीर्वाद:
लक्ष्मी और विष्णु पूजा के कारण घर में धन, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। - स्वास्थ्य और मानसिक शांति:
पूजा और ध्यान से मन निर्मल होता है, मानसिक तनाव घटता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। - पर्यावरण और सामाजिक एकता:
दीप जलाने और घाटों को सजाने की परंपरा समाज में एकता, प्रेम और उत्साह का संदेश देती है।
यह पर्व प्रकृति और संस्कृति दोनों का उत्सव है।
निष्कर्ष :
देव दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, सौंदर्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है।
इस दिन जलाया गया हर दीप भक्ति, करुणा और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।
काशी की यह रात वास्तव में स्वर्ग से भी सुंदर दिखाई देती है — जब देवता स्वयं दीपों की लौ में विराजमान होते हैं।
इस पर्व का मूल संदेश यही है —
