
तुलसी विवाह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र उत्सव है, जिसमें तुलसी (पवित्र पौधा) और भगवान विष्णु (या उनके अवतार श्रीकृष्ण) का विवाह सम्पन्न किया जाता है। यह विवाह हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जिसे “देवउठनी एकादशी” या “प्रबोधिनी एकादशी” भी कहते हैं।
- तुलसी जी का सजावट: तुलसी विवाह के लिए पहले तुलसी के पौधे को धोया जाता है और फिर रंग-बिरंगे कपड़े, फूलों और आभूषणों से सजाया जाता है। तुलसी का पौधा माटी के गमले में होता है, जो विवाह के लिए मण्डप के रूप में सजाया जाता है।
- मण्डप सजावट: तुलसी के पौधे के सामने एक छोटा सा मंडप बनाया जाता है और भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) की मूर्ति को वहाँ स्थापित किया जाता है।
- कलश स्थापना: मंडप के चारों ओर कलश स्थापित किए जाते हैं और उन पर आम के पत्ते और नारियल रखे जाते हैं।
- पूजा और आरती: पूजा के दौरान भगवान गणेश, नवग्रहों और अन्य देवी-देवताओं का आह्वान कर तुलसी माता और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी के पौधे को जल, अक्षत, रोली, मौली, फूल और सिंदूर चढ़ाया जाता है।
- फेरों का आयोजन: तुलसी और शालिग्राम की प्रतिमाओं को एक दूसरे के पास रखा जाता है, फिर उनके चारों ओर सात बार फेरे करवाए जाते हैं। इस दौरान विवाह मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
- भोग और प्रसाद वितरण: अंत में तुलसी जी को भोग अर्पित किया जाता है और विवाह की पूजा सम्पन्न होने के बाद प्रसाद बांटा जाता है।
इस तरह तुलसी विवाह संपन्न होता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह सम्पन्न करने से घर में सुख, शांति, और समृद्धि आती है, और यह वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द बनाए रखने में सहायक होता है।