
जीवित्पुत्रिका व्रत: संतान सुख और दीर्घायु का पर्व
जीवित्पुत्रिका व्रत: संतान सुख और दीर्घायु का पर्व
हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का अपना विशेष महत्व होता है। इन व्रतों का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करना है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मकता और सुख-शांति लाना भी है। ऐसा ही एक व्रत है जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत माताएँ अपने संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा के लिए करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
इस व्रत का महत्व संतान की दीर्घायु और सुखमय जीवन से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने वाली माताएँ अपने बच्चों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वे जीवन में किसी भी तरह की विपत्ति और कठिनाई से सुरक्षित रहें। यह व्रत मातृत्व की भावना और अपने बच्चों के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं और उनका जीवन स्वस्थ और सुखी बना रहता है।
व्रत का समय और तिथि
जीवित्पुत्रिका व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से तीन दिनों तक चलता है—
- पहला दिन: नहाय-खाय (इस दिन माताएँ शुद्ध होकर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं)।
- दूसरा दिन: उपवास (इस दिन माताएँ निर्जला व्रत रखती हैं अर्थात पानी तक ग्रहण नहीं करतीं)।
- तीसरा दिन: पारण (अगले दिन व्रत का समापन कर भोजन ग्रहण किया जाता है)।
व्रत की विधि
व्रत की शुरुआत प्रातःकाल स्नान करने और संकल्प लेने से होती है। व्रती माताएँ भगवान शिव, माता पार्वती और जीवित्पुत्रिका माता की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान विशेष रूप से जिउतिया (एक प्रकार का धागा या कंगन) धारण किया जाता है जिसे रक्षा का प्रतीक माना जाता है। पूजा के समय जल, फल, फूल, दीपक और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। इस व्रत में कथा सुनने का विशेष महत्व है जिसमें राजा जीमूतवाहन की कथा कही जाती है। यह कथा त्याग, बलिदान और संतान रक्षा के भाव को प्रकट करती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
इस व्रत से जुड़ी प्रमुख कथा राजा जीमूतवाहन की है। कथा के अनुसार, राजा जीमूतवाहन ने एक नागवंश के युवक को गरुड़ से बचाने के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया। गरुड़ जब उन्हें खाने आया तो उनके त्याग और धर्मपालन से प्रभावित होकर उसने न केवल उन्हें छोड़ा बल्कि आगे से नागवंश के किसी भी जीव को न खाने की प्रतिज्ञा भी की। इस कथा का संदेश यह है कि त्याग और बलिदान से संकटों को दूर किया जा सकता है।
व्रत का महत्व और लाभ
- संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है।
- बच्चों पर आने वाले संकट और कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
- यह व्रत मातृत्व की शक्ति और बच्चों के प्रति माताओं के समर्पण का प्रतीक है।
- पारिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
- धार्मिक दृष्टि से यह व्रत मन, आत्मा और शरीर की शुद्धि का भी साधन है।
शिक्षा
जीवित्पुत्रिका व्रत हमें यह सिखाता है कि मातृ-प्रेम से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती। संतान की सुरक्षा और उनकी भलाई के लिए माता हर प्रकार का त्याग करने को तैयार रहती है। यह पर्व हमें त्याग, धैर्य, विश्वास और परिवार के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
जीवित्पुत्रिका व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मातृत्व का महापर्व है। यह व्रत माताओं के अटूट प्रेम और अपने बच्चों के लिए किए गए कठोर संकल्प का प्रतीक है। जब माताएँ संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए इस कठोर व्रत को करती हैं तो यह आस्था, विश्वास और त्याग की परंपरा को जीवित रखता है। इसलिए जीवित्पुत्रिका व्रत को संतान सुख और दीर्घायु का पर्व कहा जाता है।
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जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए पूजा सामग्री
जीवित्पुत्रिका व्रत में माता अपने बच्चों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए माता जीवित्पुत्रिका (जिउतिया माता) की पूजा करती हैं। इस दिन की पूजा में निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
मुख्य पूजा सामग्री
- मूर्ति/चित्र – जीवित्पुत्रिका माता (या जिउतिया माता) का चित्र या प्रतिमा
- कलश – जल से भरा हुआ, आम्रपल्लव और नारियल से युक्त
- दीपक (घी/तेल का) – अखंड ज्योति के लिए
- अगरबत्ती/धूप – सुगंध और शुद्धि हेतु
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची
- फूल एवं माला – विशेषकर गेंदे और लाल फूल
- रौली (कुमकुम), हल्दी, चंदन, अक्षत (चावल)
- सिंदूर और डोरा (जिउतिया) – संतान रक्षा हेतु
- फल – केला, अमरूद, नारियल, सेब आदि
- सूखा मेवा – काजू, किशमिश, बादाम आदि
- नैवेद्य – मौसमी फल और विशेष पकवान
- पकवान – ठेकुआ, पूड़ी, मिठाई आदि
- पानी वाला लोटा या कलश – अर्घ्य देने के लिए
- पत्तल/डोंगा – प्रसाद रखने के लिए
- मौली/धागा (जिउतिया धागा) – माताएँ अपने हाथ में बांधती हैं
- दूब और तुलसी पत्र
- अनाज के दाने (विशेषकर गेहूं/चावल)
- मिट्टी का दिया और रुई की बत्ती
- कपड़ा (लाल या पीला) – पूजा स्थान सजाने के लिए
- जल पात्र (अर्घ्य देने के लिए)
विशेष सामग्री
- जिउतिया (सोने/चांदी/तांबे का बना हुआ) – जिसे पूजा कर माताएँ धारण करती हैं।
- कथा पुस्तक/पुस्तिका – जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनने हेतु।
👉 इन सभी सामग्रियों से विधिपूर्वक पूजन करने पर व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है और संतान की रक्षा के साथ दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा करने के उपाय (स्टेप-बाय-स्टेप विधि)
जीवित्पुत्रिका व्रत (जिउतिया) माताएँ अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत अत्यंत कठिन होता है क्योंकि इसमें माताएँ निर्जला उपवास रखती हैं। पूजा करते समय निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
1. व्रत का संकल्प
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान को पवित्र जल से शुद्ध करें और स्वच्छ आसन बिछाएँ।
- हाथ में जल, फूल और चावल लेकर संकल्प करें –
“मैं अमुक नाम, अपनी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि हेतु जीवित्पुत्रिका माता का व्रत कर रही हूँ।”
2. कलश स्थापना
- एक कलश में जल भरकर उस पर आम्रपल्लव और नारियल रखें।
- कलश पर रोली, हल्दी, अक्षत से स्वस्तिक बनाएं।
- कलश के पास दीपक जलाएं।
3. देवी पूजा
- जीवित्पुत्रिका माता की मूर्ति/चित्र को कलश के पास स्थापित करें।
- माता को सिंदूर, रोली, हल्दी, चंदन, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- पान, सुपारी, फल, मिठाई और मेवे चढ़ाएं।
- संतान की रक्षा के लिए जिउतिया डोरा (धागा) माता को अर्पित करें और हाथ में बाँधें।
4. कथा श्रवण
- व्रत के दौरान राजा जीमूतवाहन की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें।
- कथा सुनना इस व्रत का अनिवार्य अंग है, तभी व्रत पूर्ण माना जाता है।
5. संतान रक्षा की प्रार्थना
- माता से प्रार्थना करें –
“हे जीवित्पुत्रिका माता! मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ जीवन और सभी संकटों से रक्षा प्रदान करें।”
6. दीप प्रज्वलन और आरती
- घी के दीपक से माता की आरती करें।
- संतान के नाम से अर्घ्य अर्पित करें।
7. उपवास नियम
- इस दिन माताएँ निर्जला व्रत करती हैं यानी न तो जल ग्रहण करती हैं और न अन्न।
- व्रत अगले दिन पारण करके समाप्त होता है।
8. पारण विधि (अगले दिन)
- प्रातः स्नान के बाद माता की पुनः पूजा करें।
- व्रत का समापन करके फलाहार या भोजन ग्रहण करें।
- परिवार और संतान को प्रसाद बाँटें।
✅ विशेष उपाय
- व्रत के दिन मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
- किसी का अपमान न करें और क्रोध से बचें।
- व्रत करते समय हमेशा संतान की कुशलता और सुरक्षा की भावना मन में रखें।
👉 इन उपायों से व्रत का शुभ फल प्राप्त होता है और संतान को माता जीवित्पुत्रिका का आशीर्वाद मिलता है।
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