
जितिया व्रत पारण का सही समय 2025
2025 में जितिया (Jivitputrika) व्रत का पारण समय इस प्रकार है:
- व्रत तिथि: 14 सितंबर 2025, शनिवार की रात से शुरू होकर Ashtami तिथि में।
- Ashtami तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर, सुबह 5:04 बजे
- Ashtami तिथि समाप्ति: 15 सितंबर, सुबह 3:06 बजे
- पारण (व्रत खोलने) का शुभ समय: 15 सितंबर 2025, प्रातः 6:27 बजे के बाद
🌸 लाभ (Benefits)
- संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं।
- परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- माताओं को मानसिक शांति और आत्मबल मिलता है।
- यह व्रत संतान को बुरी शक्तियों और रोगों से बचाता है।
- व्रती महिला को पुण्य की प्राप्ति होती है।
🌸 महत्व (Significance)
- यह व्रत खासकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तरप्रदेश में बड़ी श्रद्धा से किया जाता है।
- इस व्रत की मान्यता है कि यह माँ और संतान के रिश्ते को और मजबूत करता है।
- पौराणिक कथा के अनुसार, इस व्रत से संतान पर मृत्यु जैसे संकट भी दूर हो जाते हैं।
- महिलाएँ 24 घंटे निर्जला रहकर अपने बच्चों के सुख और आयु की कामना करती हैं।
- इसे करने से पारिवारिक बंधन और अधिक सुदृढ़ होते हैं।
🌸 शिक्षा (Teachings)
- त्याग और प्रेम की सीख – माँ अपने बच्चों के लिए हर कठिनाई सह सकती है।
- अनुशासन और संयम – व्रत से संयम और आत्मनियंत्रण का महत्व समझ आता है।
- सकारात्मक सोच – कठिन परिस्थितियों में भी आशा और आस्था बनाए रखने की प्रेरणा मिलती है।
- धार्मिक विश्वास – ईश्वर और माता-पिता के प्रति श्रद्धा और भक्ति बढ़ती है।
🌸 विधि (Vidhi)
- नहाय-खाय (पहला दिन) – महिलाएँ स्नान कर शुद्ध होकर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।
- खरजूटीया (दूसरा दिन) – इस दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। न जल, न अन्न ग्रहण किया जाता है।
- व्रत के दौरान महिलाएँ जितमल राजा और जीउतिया माता की पूजा करती हैं।
- अष्टमी तिथि में नदी या तालाब के किनारे पूजा कर वृक्ष की डाल पर धागा (सूत्र) बांधती हैं।
- कथा श्रवण – जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनी जाती है।
- पारण (तीसरा दिन) – नवमी तिथि में सूर्योदय के बाद व्रत खोला जाता है। फल, अन्न या प्रसाद ग्रहण कर पारण किया जाता है।
🌸 पूजन सामग्री (Poojan Samagri)
- स्वच्छ मिट्टी या बालू (पिठार बनाने हेतु)
- कलश और जल
- दूब घास
- अखंड दीपक के लिए सरसों/घी का तेल व बत्ती
- फूल (गेंदे, लाल-पीले फूल)
- अक्षत (चावल)
- रोली, हल्दी और सिंदूर
- धूप, अगरबत्ती और कपूर
- सुपारी
- पान के पत्ते
- मौसमी फल (केला, नारियल, अमरूद आदि)
- गुड़ और मिठाई
- दूध, दही और शहद
- प्रसाद हेतु खजूर, ठेकुआ या घर का बना पकवान
- लौकी (कद्दू) या बैगन (कथा अनुसार)
- कपड़े का धागा (सूत्र बाँधने हेतु)
- मिट्टी का दीपक
- ताम्बूल (पान-सुपारी)
- अनाज (गेहूँ/चावल)
- थाली और आसन (पूजा के लिए)
🌸 पूजा करने के सही उपाय
- स्नान और शुद्धि
- प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को गंगाजल या शुद्ध जल से पवित्र करें।
- कलश स्थापना
- मिट्टी/पीतल का कलश स्थापित करें।
- उसमें गंगाजल, सुपारी, दूब घास और सिक्का डालकर नारियल से ढक दें।
- दीप प्रज्वलन
- सरसों के तेल/घी का अखंड दीप जलाएँ।
- पूजा के दौरान दीपक जलता रहना चाहिए।
- व्रती आसन ग्रहण करें
- व्रती महिला पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पूजा सामग्री को अपने सामने सजाएँ।
- देवी-देवताओं का आह्वान
- सबसे पहले गणेश जी, फिर सूर्य देव और फिर जीउतिया माता का आह्वान करें।
- जितमल राजा और जीवित्पुत्रिका माता की कथा का पाठ करें।
- सूत्र बाँधना
- व्रती महिलाएँ नदी या पीपल/आम के पेड़ के नीचे जाकर सूती धागा बाँधती हैं।
- यह संतान की रक्षा का प्रतीक है।
- भोग अर्पण
- मौसमी फल, गुड़, ठेकुआ, दूध-दही-फल आदि अर्पित करें।
- सिंदूर, रोली, अक्षत, फूल चढ़ाएँ।
- कथा श्रवण
- जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनना आवश्यक है।
- कथा सुनने के बाद माता जी से संतान सुख व दीर्घायु की कामना करें।
- भजन और प्रार्थना
- संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
- माता जी का कीर्तन/भजन करें।
- पारण का नियम
- अष्टमी तिथि समाप्ति के बाद नवमी तिथि की सुबह व्रत तोड़ा जाता है।
- सूर्योदय के बाद फलाहार/अन्न ग्रहण कर पारण करें।
👉 विशेष ध्यान रखें :
- पूजा के समय मन में कोई नकारात्मक विचार न लाएँ।
- व्रती महिला को पूरे दिन निर्जला रहना चाहिए।
- व्रत के दौरान झूठ, कपट, क्रोध और अपवित्रता से दूर रहना चाहिए।
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