छठ पूजा का पारण कब करें
छठ पूजा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य देव और छठी माता की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में व्रती चार दिन तक उपवास रखते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। छठ पूजा का अंतिम दिन, जिसे छठ अष्टमी कहा जाता है, व्रती अपना उपवास समाप्त करते हैं। इसे पारण कहा जाता है।
पारण का सही समय और विधि का पालन करना बेहद आवश्यक माना जाता है। व्रती अष्टमी के दिन सूर्योदय या सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या किसी स्वच्छ जलाशय के किनारे जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद ही उपवास तोड़ा जाता है। पारण के समय व्रती हल्का और शुद्ध भोजन करते हैं। इसमें आमतौर पर फल, खीर, ठंडा जल और अन्य प्राकृतिक भोज्य पदार्थ शामिल होते हैं।
छठ पूजा का पारण केवल उपवास तोड़ने का अवसर नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धता और संयम का प्रतीक भी है। पारण से पहले व्रती शुद्ध स्थान पर बैठते हैं और भगवान को प्रार्थना करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पारण का मुख्य उद्देश्य व्रत के दौरान किए गए तप और भक्ति को संपूर्ण करना है।
व्रती और उनके परिवार के सदस्य पारण के समय घर और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं। पारण का समय सही तरीके से पालन करना धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन भोजन ग्रहण करते समय भी संयम और सादगी बनाए रखना आवश्यक होता है।
संक्षेप में, छठ पूजा का पारण अष्टमी के दिन सूर्योदय या सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। यह उपवास का अंत है और व्रती की भक्ति, तप और श्रद्धा का समापन करता है।
