
अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि और नियम
व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उन्नति के लिए किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से माताएं करती हैं। इस दिन अहोई माता (जो सात बेटों वाली देवी के रूप में पूजनीय हैं) की पूजा की जाती है।
व्रत और पूजा का समय
- तिथि: कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी
- उपवास: सूर्योदय से लेकर रात्रि में तारों के दर्शन तक
- चंद्र दर्शन: तारों और चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
पूजा सामग्री
- अहोई माता की तस्वीर या दीवार पर बनाई गई अहोई माता की आकृति
- चावल, रोली, हल्दी, अक्षत
- जल से भरा हुआ कलश
- दीया, धूप, फूल
- दूध से भरा लोटा
- चांदी की अहोई, सेह (साही) और बिल्ले की मूर्ति (यदि हो)
- सूत का धागा, मिठाई, फल और सनई के दाने
पूजा विधि (Step-by-Step)
- स्नान और संकल्प:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प लें —
“मैं अहोई माता की पूजा कर संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि की कामना करती हूं।” - अहोई माता की प्रतिमा स्थापित करें:
दीवार पर अहोई माता, उनके साथ साही और बिल्ले की आकृति बनाएं या चित्र लगाएं। - कलश स्थापना करें:
जल से भरा कलश रखें और उस पर नारियल रखें। यह मातृशक्ति और सुख का प्रतीक माना जाता है। - दीपक जलाएं और पूजन करें:
दीपक जलाकर अहोई माता की पूजा करें — रोली, चावल, फूल, दूध और मिठाई अर्पित करें। - व्रत कथा सुनें:
अहोई अष्टमी की कथा ध्यानपूर्वक सुनें। यह कथा सुनना व्रत का मुख्य भाग होता है। - तारों और चंद्रमा का दर्शन:
शाम को जब तारे दिखाई दें तो सात तारों और चंद्रमा का दर्शन करें, जल अर्पित करें और अपने बच्चों के नाम लेकर आशीर्वाद मांगें। - व्रत पारण:
चंद्र दर्शन के बाद जल और फल का सेवन कर व्रत का पारण करें।
व्रत के नियम
- व्रत के दिन निर्जला उपवास रखा जाता है (कुछ महिलाएं फलाहार कर सकती हैं)।
- सुई-धागा, कैंची या सिलाई-बुनाई का काम नहीं करना चाहिए।
- दिनभर मन शांत रखें, किसी से कटु वचन न बोलें।
- बच्चों पर क्रोध न करें और घर में सात प्रकार के अनाज न पकाएं।
- अहोई माता की कथा और पूजा संध्या के समय अवश्य करें।
- व्रत का पारण चंद्र दर्शन के बाद ही करें।
विशेष मान्यता
कहा जाता है कि अहोई माता की पूजा से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं, और माता के आशीर्वाद से घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
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