
संतोषी माता की व्रत कथा
संतोषी माता व्रत कथा
एक समय की बात है, एक वृद्धा स्त्री के सात पुत्र थे। वे सब अलग-अलग स्वभाव के थे। उनमें से छह पुत्र मेहनत करने वाले और धनवान हो गए, लेकिन सबसे छोटा पुत्र आलसी, गरीब और दुखी जीवन व्यतीत करता था। उसकी पत्नी भी बड़ी ही सीधी-साधी और धैर्यवान थी।
एक दिन छोटा पुत्र अपनी मां से बोला –
“मां! मेरे सभी भाई बड़े सुख-सुविधाओं से जीवन बिता रहे हैं, पर मैं बहुत दुखी हूं। मुझे बताइए, मेरे दुख कब दूर होंगे?”
मां ने कहा –
“बेटा! तू भाग्यहीन है, इसलिए ऐसा है।”
यह सुनकर वह दुखी होकर घर से निकल पड़ा और रास्ते में सोचने लगा – काश! मेरे दुखों का कोई उपाय होता।
संतोषी माता का परिचय
रास्ते में चलते-चलते वह एक साधु से मिला। साधु ने पूछा –
“बेटा! तू इतना चिंतित क्यों है?”
उसने अपनी व्यथा सुनाई। तब साधु बोले –
“बेटा, तू संतोषी माता का व्रत और पूजन कर। माता सबकी मनोकामना पूरी करती हैं।”
उसने पूछा –
“हे महाराज! यह व्रत कैसे करना है?”
साधु बोले –
“शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत रख। केवल एक बार भोजन करना, खट्टे पदार्थ का त्याग करना और माता की कथा सुनना। गरीब-निर्धन बच्चों को गुड़ और चना खिलाना। माता की पूजा में धूप, दीप और प्रसाद चढ़ाना। ऐसा लगातार 16 शुक्रवार तक कर, तेरे सारे कष्ट दूर होंगे।”
व्रत का प्रभाव
वह युवक घर लौटा और अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं। उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुई और बोली –
“यह तो बहुत सरल व्रत है, मैं अवश्य करूंगी।”
उसने अगले ही शुक्रवार से व्रत प्रारंभ किया। बड़े श्रद्धा और विश्वास से पूजा की, कथा सुनी और बच्चों को गुड़-चना खिलाया। धीरे-धीरे घर की स्थिति सुधरने लगी।
परीक्षा का समय
एक दिन उसकी सास और जिठानी (भाभी) ने देखा कि छोटे बेटे के घर में सुख-संपन्नता बढ़ रही है। वे जलने लगीं और सोचने लगीं – यह सब कैसे हो रहा है?
उन्होंने साजिश रची। एक शुक्रवार को जब बहू व्रत कर रही थी, तो सास ने क्रोधपूर्वक खट्टा पदार्थ (नींबू और सिरका) उसके हाथ में दे दिया और जबरदस्ती खिलाया।
नियम भंग होते ही संतोषी माता क्रोधित हुईं और अचानक घर की समृद्धि कम होने लगी। धन-धान्य का नुकसान हुआ और पति पर संकट आने लगे।
प्रार्थना और कृपा
बहू को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने रो-रोकर संतोषी माता से प्रार्थना की –
“माता! मुझसे भूल हो गई। आप मुझे क्षमा करें। अब मैं पूरी निष्ठा और नियम से आपका व्रत करूंगी।”
संतोषी माता प्रकट हुईं और बोलीं –
“बेटी, तू चिंता मत कर। तेरा विश्वास अटूट है, इसलिए तुझे सब सुख मिलेगा। लेकिन याद रख, मेरे व्रत में कभी भी खट्टे पदार्थ का सेवन न करना।”
परिणाम
कुछ ही दिनों में घर की दरिद्रता समाप्त हो गई। पति को अच्छी नौकरी मिली, धन-धान्य आने लगा, घर में खुशियां छा गईं।
सभी लोग चकित रह गए। तब बहू ने सबको बताया कि यह सब संतोषी माता की कृपा से हुआ है। धीरे-धीरे संतोषी माता का व्रत और पूजा पूरे नगर में प्रसिद्ध हो गई।
नियम:
- शुक्रवार को व्रत रखें।
- केवल एक समय भोजन करें।
- खट्टे पदार्थ वर्जित हैं।
- बच्चों को गुड़-चना खिलाना अनिवार्य है।
- 16 शुक्रवार तक यह व्रत करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
फल
जो भक्त सच्चे मन से संतोषी माता का व्रत करता है, उसके जीवन में कभी दरिद्रता, क्लेश या अभाव नहीं रहता। घर में सुख, शांति और सम्पन्नता बनी रहती है।
संतोषी माता व्रत का महत्व
संतोषी माता का व्रत मुख्य रूप से शुक्रवार के दिन किया जाता है। इस व्रत का महत्व धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों स्तर पर बहुत गहरा है।
1. धन-समृद्धि और सुख-शांति
संतोषी माता का व्रत करने से घर-परिवार में धन, धान्य और वैभव की वृद्धि होती है। माना जाता है कि माता की कृपा से कभी भी घर में दरिद्रता और अभाव नहीं रहता। जिस परिवार की महिलाएँ या पुरुष यह व्रत करते हैं, वहाँ घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
2. संतोष की प्राप्ति
जैसा कि माता के नाम से ही स्पष्ट है – संतोषी माता, जो भी उनके व्रत का पालन करता है, उसके मन में लोभ, लालच और असंतोष का नाश होता है। भक्त को संतोष, धैर्य और संयम की प्राप्ति होती है। यही संतोष जीवन में सच्चा सुख प्रदान करता है।
3. परिवार में प्रेम और एकता
इस व्रत को करने से परिवार में कलह-क्लेश, ईर्ष्या और विवाद समाप्त होते हैं। पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और परिवार में एकता बनी रहती है। जिन घरों में हमेशा झगड़े या मतभेद रहते हैं, वहाँ यह व्रत करने से वातावरण शांत और सकारात्मक हो जाता है।
4. संकट निवारण
माना जाता है कि शुक्रवार को माता संतोषी का व्रत करने से जीवन के सभी संकट और कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं। भक्त के रास्ते की बाधाएँ स्वयं दूर होकर सफलता का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
5. संतान सुख और वैवाहिक सुख
यह व्रत उन दंपतियों के लिए विशेष फलदायी है, जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही। साथ ही, जिनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है या पति-पत्नी में अनबन रहती है, उनके लिए यह व्रत अचूक माना जाता है।
6. भक्ति और श्रद्धा की शक्ति
इस व्रत का मूल सार यही है कि –
- बिना लोभ-लालच के
- पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से
- माता की पूजा की जाए।
भक्त यदि निष्ठापूर्वक व्रत करें, तो माता तुरंत प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
7. नमक और खटाई का निषेध
संतोषी माता के व्रत में नमक और खटाई का त्याग विशेष महत्व रखता है। यह त्याग मनुष्य को संयम सिखाता है और जीवन में संतोष के भाव को जागृत करता है।
8. अत्यंत सरल और फलदायी व्रत
अन्य व्रतों की तरह इसमें बहुत भारी-भरकम सामग्री या कठिन अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती। केवल सच्चे मन से गुड़-चना का भोग लगाकर, नमक-खटाई का त्याग कर, कथा सुनकर और माता का स्मरण करके व्रत करने से ही अपार पुण्य और लाभ मिलता है।
निष्कर्ष
संतोषी माता व्रत का महत्व केवल भौतिक सुख-समृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्रत मनुष्य को मानसिक शांति, संतोष और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा से यह व्रत करता है, उसके जीवन से दुख, दरिद्रता, क्लेश और असंतोष समाप्त होकर सुख, समृद्धि और संतोष का वास हो जाता है।
माँ काली की पूजा में मुख्य बात