
संतोषी माता की कथा सुनने से होता है भाग्य उदय
(पूरी कथा व्रत की महिमा और भाग्य उदय का चमत्कार बताती है)
बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था। इस परिवार में सात बेटे थे। छह बेटों की पत्नियाँ थीं और वे सभी सुख-सुविधा से जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन सबसे छोटा बेटा गरीब था और कहीं बाहर कमाने के लिए चला गया। उसकी पत्नी, एक सीधी-सादी, भक्तिमती और सेवा-भावना से भरपूर स्त्री, घर पर ही रहती थी। परंतु घर में उसकी हालत दासी से भी बदतर थी।
सास-ससुर और जेठानियाँ उसे हर समय ताने देतीं, काम करवातीं, और कभी भी प्यार या सम्मान नहीं देती थीं। फिर भी वह बहू हमेशा चुप रहती, नित्य देवी-देवताओं की पूजा करती और संतोष से जीती। उसका एक ही सपना था – उसका पति लौट आए, और उसका जीवन सुखी हो जाए।
🌼 एक दिन का मोड़
एक दिन वह स्त्री बहुत दुखी होकर एक मंदिर में गई और देवी की मूर्ति के सामने फूट-फूटकर रोने लगी। तभी वहाँ एक वृद्धा आई और बोली –
“बेटी, क्यों रो रही है? अपने दुःख मुझे बता।”
स्त्री ने अपनी सारी व्यथा उस वृद्धा को सुना दी। वृद्धा मुस्कराई और बोली –
“तू हर शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत रख, सच्चे मन से माता की पूजा कर, कथा सुन, और गुड़-चना का भोग चढ़ा। देख, तेरे जीवन का भाग्य कैसे चमक उठेगा।”
🌸 व्रत की शुरुआत
उसने उसी दिन से व्रत शुरू किया।
प्रत्येक शुक्रवार को माता की पूजा करती, साफ-सुथरी जगह पर मूर्ति रखती, गुड़ और चने का भोग चढ़ाती, दीपक जलाती और व्रत कथा सुनती।
साथ ही यह व्रत करते समय उसने दो नियमों का पूरी श्रद्धा से पालन किया –
- खट्टा नहीं खाना
- भोग और प्रसाद में भी किसी प्रकार का अम्ल (नींबू, दही, इमली आदि) नहीं होने देना।
हर शुक्रवार वह व्रत रखती, भगवान का नाम लेती और अपने भाग्य में बदलाव की प्रतीक्षा करती। उसके पास धन नहीं था, लेकिन भक्ति में कभी कमी नहीं आई।
🌟 चमत्कार की शुरुआत
कई सप्ताहों बाद उसका पति घर लौटा। वह अच्छे धन के साथ आया। उसने पत्नी से कहा,
“मैं जिस जगह गया था, वहाँ मुझे एक ईमानदार मालिक मिला। उन्होंने मुझे काम दिया और मैं अपने पुरुषार्थ से तरक्की करता गया।”
अब वह सारा परिवार पत्नी की श्रद्धा और व्रत की महिमा को मानने लगा।
पति-पत्नी दोनों मिलकर घर बसाने लगे। घर में सुख, समृद्धि, मान-सम्मान और शांति लौट आई। उस स्त्री ने संकल्प लिया कि वह 16 शुक्रवार तक व्रत पूरा करके माता का विशेष पूजन करेगी।
🔱 अंतिम शुक्रवार की परीक्षा
16वां शुक्रवार आया। स्त्री ने बड़ी श्रद्धा से माता का व्रत किया और मनोकामना पूरी होने के बाद पड़ोसियों और ब्राह्मणों को गुड़ और चने का भोग वितरित करने का संकल्प लिया। लेकिन एक जेठानी ने ईर्ष्या में आकर प्रसाद में नींबू का अचार डाल दिया।
उसका परिणाम यह हुआ कि उसके पति को तुरंत ही चोट लग गई और घर में अशांति आ गई।
स्त्री को तुरंत अपनी गलती का बोध हुआ कि प्रसाद में खट्टा नहीं होना चाहिए था। उसने अगले शुक्रवार को फिर से व्रत रखा, माता से क्षमा मांगी और नियमों का कठोर पालन किया।
💫 माता का वरदान
संतोषी माता उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और स्वप्न में दर्शन देकर कहा –
“बेटी, तुझसे जो भूल हुई, वह तेरे अज्ञान से थी। परंतु तेरा मन शुद्ध और श्रद्धा से भरा है। अब से तेरे जीवन में कोई कष्ट नहीं रहेगा।”
अगले दिन सब कुछ सामान्य हो गया। पति पूरी तरह ठीक हो गया, व्यवसाय और भी अच्छा चलने लगा, और स्त्री को पूरा सम्मान मिलने लगा।
🙏 कथा का संदेश
जो भक्त सच्चे मन से संतोषी माता की पूजा करता है, उसका भाग्य जरूर चमकता है।
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि माता का व्रत करने से दुर्भाग्य दूर होता है, घर में धन-धान्य, शांति, और संतोष आता है।
🔔 व्रत की आवश्यक बातें:
- व्रत शुक्रवार को किया जाता है
- खट्टा नहीं खाना है
- गुड़ और चना चढ़ाना चाहिए
- कथा सुनना अनिवार्य है
- 16 शुक्रवार व्रत के बाद उडद की खीर और भोग से माता का पूजन करें
🌺 अंतिम वाक्य:
संतोषी माता की कथा सुनने और व्रत करने से जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और संतोष का उदय होता है। जो सच्चे मन से माता को पुकारता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।