
श्लोक 61
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।
हिंदी अर्थ:
हे अर्जुन! ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में विराजमान हैं और अपनी माया से सब प्राणियों को यंत्र के समान घुमा रहे हैं।
श्लोक 62
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।
हिंदी अर्थ:
हे भारत! तुम उसी परमात्मा की शरण में जाओ। उनकी कृपा से तुम परम शांति और शाश्वत स्थान को प्राप्त करोगे।
श्लोक 63
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।
हिंदी अर्थ:
मैंने तुम्हें यह अति गोपनीय ज्ञान बता दिया है। इसे भली प्रकार विचार करके, जैसे तुम्हारी इच्छा हो, वैसे करो।
श्लोक 64
सर्वगुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।
हिंदी अर्थ:
अब फिर से सबसे गोपनीय और परम वचन सुनो, क्योंकि तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो, इसलिए मैं तुम्हारा हित कहता हूँ।
श्लोक 65
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।
हिंदी अर्थ:
तुम मुझमें मन लगाओ, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो। ऐसा करने से तुम मुझे ही प्राप्त करोगे। यह मैं सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तुम मुझे प्रिय हो।
श्लोक 66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
हिंदी अर्थ:
सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा। शोक मत करो।
श्लोक 67
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति।।
हिंदी अर्थ:
यह ज्ञान उन्हें नहीं देना चाहिए जो तपस्वी नहीं हैं, भक्त नहीं हैं, सुनने के इच्छुक नहीं हैं, अथवा मुझ पर दोषारोपण करने वाले हैं।
श्लोक 68
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।।
हिंदी अर्थ:
जो इस परम गोपनीय ज्ञान को मेरे भक्तों को सुनाएगा, वह मुझमें परम भक्ति प्राप्त करेगा और निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करेगा।
श्लोक 69
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।
हिंदी अर्थ:
उन मनुष्यों में से कोई भी मुझे उससे अधिक प्रिय नहीं है, और न ही इस पृथ्वी पर उससे अधिक प्रिय कोई और होगा।
श्लोक 70
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।
हिंदी अर्थ:
जो व्यक्ति हमारे इस धर्मपूर्ण संवाद को पढ़ेगा, वह ज्ञानयज्ञ के द्वारा मेरी पूजा करेगा। यह मेरा मत है।
श्लोक 71
श्रद्धावाननसूयश्च शृणुयादपि यो नरः।
सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।
हिंदी अर्थ:
जो श्रद्धालु और दोषारोपण से रहित व्यक्ति इसे सुनेगा, वह भी पवित्र कर्मों के फलस्वरूप शुभ लोकों को प्राप्त करेगा।
श्लोक 72
कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।
कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनंजय।।
हिंदी अर्थ:
हे पार्थ! क्या तुमने इसे एकाग्रचित्त होकर सुना? हे धनंजय! क्या तुम्हारा अज्ञान और मोह नष्ट हो गया?
श्लोक 73
अर्जुन उवाच:
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।
हिंदी अर्थ:
अर्जुन ने कहा: हे अच्युत! मेरा मोह नष्ट हो गया है और आपकी कृपा से मेरी स्मृति लौट आई है। अब मैं स्थिर हूँ और सभी संदेहों से मुक्त हूँ। मैं आपके वचन का पालन करूंगा।
श्लोक 74
सञ्जय उवाच:
इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्।।
हिंदी अर्थ:
संजय ने कहा: इस प्रकार मैंने वासुदेव और महात्मा पार्थ का यह अद्भुत संवाद सुना, जिससे मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
श्लोक 75
व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम्।
योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्।।
हिंदी अर्थ:
महर्षि व्यास की कृपा से मैंने स्वयं योगेश्वर भगवान कृष्ण से यह परम गोपनीय योग सुना।
श्लोक 76
राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः।।
हिंदी अर्थ:
हे राजन! केशव और अर्जुन के इस पवित्र और अद्भुत संवाद को बार-बार स्मरण करके मैं बार-बार आनंदित हो रहा हूँ।
श्लोक 77
तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।
विस्मयो मे महान्राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः।।
हिंदी अर्थ:
हे राजन! भगवान श्रीकृष्ण के उस अत्यंत अद्भुत रूप का स्मरण करके मैं विस्मय से भर जाता हूँ और बार-बार आनंदित होता हूँ।
श्लोक 78
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
हिंदी अर्थ:
जहाँ योगेश्वर भगवान कृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहाँ निश्चित रूप से श्री, विजय, ऐश्वर्य और धर्म हैं। यह मेरा मत है।
1. ईश्वर की सर्वव्यापकता (श्लोक 18.61)
शिक्षा:
ईश्वर हर प्राणी के हृदय में विराजमान हैं और संसार को अपनी माया से नियंत्रित करते हैं। यह सिखाता है कि हमें यह समझना चाहिए कि हमारी शक्ति, ज्ञान, और कर्म सब ईश्वर की कृपा से ही संभव हैं।
2. शरणागति का महत्व (श्लोक 18.62)
शिक्षा:
सभी दुखों और समस्याओं से मुक्त होने का मार्ग ईश्वर की शरण में जाना है। उनके प्रति पूर्ण समर्पण से शांति और मुक्ति प्राप्त होती है।
3. स्वतंत्रता और कर्म (श्लोक 18.63)
शिक्षा:
ईश्वर ने हर व्यक्ति को सही और गलत के बीच निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी है। यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए और उन्हें सोच-समझकर करना चाहिए।
4. भक्ति का महत्व (श्लोक 18.64-66)
शिक्षा:
ईश्वर सदा अपने भक्तों के कल्याण की इच्छा रखते हैं। यदि हम सभी प्रकार के धर्मों और कर्तव्यों को त्यागकर केवल उनकी शरण में जाते हैं, तो वे हमारे सभी पापों को हर लेते हैं और हमें मुक्ति प्रदान करते हैं।
5. गीता का पवित्र ज्ञान (श्लोक 18.67-68)
शिक्षा:
गीता के ज्ञान को सच्चे और श्रद्धालु लोगों के साथ साझा करना चाहिए। यह सिखाता है कि गीता का ज्ञान केवल उन लोगों को दिया जाना चाहिए जो इसे समझने और मानने की इच्छा रखते हैं।
6. गीता का अध्ययन और श्रवण (श्लोक 18.69-70)
शिक्षा:
जो लोग गीता का प्रचार करते हैं या इसे पढ़ते और सुनते हैं, वे ईश्वर के प्रिय होते हैं। गीता का पाठ और श्रवण स्वयं में एक पवित्र कार्य है।
7. संवाद का उद्देश्य (श्लोक 18.71-72)
शिक्षा:
जो श्रद्धा और ध्यानपूर्वक गीता को सुनते हैं, वे पवित्र होते हैं और उन्हें जीवन के सत्य का ज्ञान प्राप्त होता है।
8. कर्मयोग और समर्पण (श्लोक 18.73-74)
शिक्षा:
अर्जुन द्वारा आत्मसमर्पण यह दर्शाता है कि जब हम संदेह और भ्रम से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों को निभाते हैं, तो सफलता निश्चित होती है।
9. गीता की महिमा (श्लोक 18.75-78)
शिक्षा:
गीता का ज्ञान हमें धर्म, कर्तव्य, और ईश्वर की महिमा का बोध कराता है।
अंतिम श्लोक में बताया गया है कि जहाँ धर्म और ईश्वर का साथ हो, वहाँ सदैव विजय, ऐश्वर्य, और शांति होती है।
सार:
- ईश्वर की शरणागति जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
- अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर पर विश्वास बनाए रखना चाहिए।
- गीता का ज्ञान हमें सत्य, धर्म और मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
- समर्पण और भक्ति से ही जीवन की सभी समस्याओं का समाधान संभव है।
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