भौम प्रदोष व्रत कब है
- प्रदोष व्रत हर हिंदू माह में दो बार आता है — एक शुक्ल पक्ष (चंद्रमा बढ़ने पक्ष) की त्रयोदशी तिथि पर, और एक कृष्ण पक्ष (चंद्रमा घटने पक्ष) की त्रयोदशी तिथि पर।
- इस व्रत में श्रद्धालु सूर्यास्त के आसपास (संध्याकाल / “प्रदोष काल”) — यानी दिन ढलते समय — भगवान शिव (और माता पार्वती) की पूजा, अभिषेक, दीप-प्रज्ज्वलन, बेलपत्र आदि अर्पण करते हैं, व्रत रखते हैं।
“भौम” प्रदोष व्रत — विशेष क्या है?
- यदि प्रदोष तिथि मंगलवार को पड़ती है, तो उस प्रदोष व्रत को “भौम प्रदोष” कहते हैं। “भौम” शब्द मंगल ग्रह (Mars) से जुड़ा है।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिवजी तथा — विशेष रूप से — यदि चाहें, तो हनुमान जी की उपासना भी कर सकते हैं। इस व्रत से मंगल दोष, शत्रु बाधा, कर्ज-कष्ट आदि दूर होने, जीवन में शांति-सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता है।
2025 में अगली “भौम प्रदोष” — और माह अनुसार कुछ उदाहरण
- 2025 के दिसंबर महीने में अगला प्रदोष व्रत 02 दिसंबर 2025 (मंगलवार) को है — क्योंकि उस दिन त्रयोदशी तिथि मंगलवार को पड़ रही है, इसलिए यह “भौम प्रदोष” होगा।
- उसी महीने में दूसरा प्रदोष व्रत 17 दिसंबर 2025 को है (लेकिन वो दिन बुधवार है, इसलिए वह भौम नहीं होगा)।
- यानी, हर महीने की त्रयोदशी में एक जैसी व्रत तिथि होती है — लेकिन वह “भौम” बनेगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह दिन मंगलवार हो या न हो।
🙏 भौम प्रदोष व्रत की पूजा-विधि और महत्व
- व्रत वाले दिन सुबह स्नान कर व्रत संकल्प लें।
- शाम (प्रदोष काल) के समय शिवलिंग को जल, बेलपत्र, धूप-दीप आदि से पूजा करें। पंचांग के अनुसार प्रदोष काल — सूर्यास्त के बाद 1.5 घंटे पहले और बाद का समय — शुभ माना जाता है।
- व्रतधारी को दिनभर उपवास रखना चाहिए; पूजा के बाद फल-फूल, जल, मिठाई आदि भोग अर्पित करें। व्रत कथा सुनना, मंत्र जप (जैसे “ॐ नमः शिवाय”), शिव-चालीसा आदि पाठ करना शुभ होता है।
- धार्मिक मान्यता: इस व्रत से पाप नष्ट होते हैं, मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव से रक्षा मिलती है, जीवन में सुख-शांति, बाधा निवारण, ऋण मुक्ति, सफलता व समृद्धि होती है।
ध्यान रखने योग्य बातें
- भौम प्रदोष व्रत सिर्फ उस माह की त्रयोदशी तब होता है, जब वह त्रयोदशी मंगलवार हो। अन्य दिन (जैसे सोमवार, शनिवार, रविवार, आदि) आते हैं लेकिन वे “सोम प्रदोष”, “शनि प्रदोष”, “भानु/रवि प्रदोष” आदि कहलाते हैं।
- व्रत और पूजा का शुभ समय (प्रदोष काल) — सूर्यास्त के आसपास शाम से रात — के लिए पंचांग देख लेना चाहिए, क्योंकि तिथि व सूर्य-अस्त समय दोनों को ध्यान देना होता है।
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