बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि
बृहस्पतिवार व्रत की विस्तृत पूजा विधि
(घर में करने योग्य संपूर्ण और सरल विधि)
1. व्रत का उद्देश्य
गुरुवार व्रत मुख्यतः—
- धन–संपत्ति की वृद्धि
- विवाह में आ रही बाधा दूर करने
- संतान प्राप्ति व परिवार की सुख-शांति
- गुरु कृपा, ज्ञान और करियर में उन्नति
- दाम्पत्य जीवन में मधुरता
के लिए किया जाता है।
2. व्रत के नियम (आरंभ से पहले)
- व्रत प्रायः 16 गुरुवार या 5 गुरुवार या मनोकामना पूरी होने तक किया जाता है।
- व्रत वाले दिन पीले कपड़े पहनना उत्तम माना जाता है।
- केला, पीली दाल, नमक, तेल, साबुन निषिद्ध माना जाता है।
- इस दिन बाल न कटवाएँ, वस्त्र न फाड़ें।
- व्रत सूर्योदय से पहले शुरू करने का संकल्प लें।
3. पूजन सामग्री की सूची
बहुत विस्तृत:
मुख्य सामग्री
- भगवान विष्णु / बृहस्पति देव की तस्वीर या प्रतिमा
- केले का पौधा (यदि उपलब्ध हो)
- पीला कपड़ा
- हल्दी, केसर
- चावल, अक्षत
- रोली
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
- गंगाजल
- दीपक (घी का उत्तम)
- अगरबत्ती
- पीले फूल (गेंदा, पीली गुलाब)
- पीला नैवेद्य (चना दाल, बेसन लड्डू, केसर हलवा)
- गुड़ / चने / बनाना
- तुलसी पत्ती
- पीली मिठाई
- पीतल का लोटा
- जल कलश
- प्रसाद के लिए केले या गुर-चना
4. व्रत का दिनचर्या
(1) प्रातःकाल स्नान
- सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठें।
- नहाकर पीले वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ करें।
(2) संकल्प (Sankalp)
पीतल का लोटा लें, उसमें जल, चावल, हल्दी डालकर संकल्प करें—
“ॐ ब्रह्मणो गुरवे नमः। मैं आज बृहस्पतिवार का व्रत अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए कर रहा/रही हूँ।”
(3) आसन और वेदी तैयारी
- भगवान विष्णु / बृहस्पति देव की मूर्ति को पीले आसन पर स्थापित करें।
- यदि केला का पौधा हो तो उसे बगल में रखें।
- सामने घी का दीपक जलाएँ।
5. शुद्धिकरण
कलश जल छिड़ककर स्थान व स्वयं का शुद्धिकरण करें—
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा…” मंत्र बोलें।
6. मुख्य पूजा प्रक्रिया (Step-by-step)
1. ध्यान
भगवान बृहस्पति का ध्यान मंत्र बोले—
“ॐ गुरुवे नमः”
“ॐ बृं बृहस्पतये नमः”
2. आवाहन
बृहस्पति देव को अपने घर में विराजित होने का आग्रह करें—
“भगवन् बृहस्पते! मम गृहे आगच्छ-आगच्छ। पूजां गृहाण।”
3. अभिषेक
मूर्ति पर हल्का जल छिड़कें।
(यदि प्रतिमा को नहलाना संभव न हो तो सिर्फ जल, गंगाजल छिड़कना ही पर्याप्त है।)
4. पंचोपचार/षोडशोपचार पूजा
(i) जल अर्पण
(ii) अक्षत
(iii) हल्दी-कुमकुम
(iv) फूल अर्पण
(v) तुलसी पत्र
(vi) दीप-धूप अर्पण
(vii) नैवेद्य — पीली मिठाई, गुड़ चना, केला
(viii) दक्षिणा — पीला वस्त्र, हल्दी
7. बृहस्पतिवार व्रत कथा (विस्तार से)
पूजा के बाद बृहस्पतिवार व्रत की पारंपरिक कथा पढ़ें:
कथा संक्षेप में (लेकिन विस्तृत)
एक समय एक राजा और रानी थे। रानी बहुत घमंडी थी और बृहस्पति देव की पूजा नहीं करती थी। एक दिन उसके घर बृहस्पति भगवान वेश बदलकर भिक्षा माँगने आए, लेकिन रानी ने अपमान कर उन्हें खाली हाथ लौटा दिया।
बृहस्पति देव रुष्ट हुए और कहा—
“आज से तेरे घर का वैभव नष्ट हो जाएगा।”
कुछ ही दिनों में राजमहल उजड़ गया, रानी दर-दर भटकने लगी। एक दिन एक स्त्री ने रानी को बृहस्पतिवार का व्रत करने की सलाह दी।
रानी ने 16 गुरुवार व्रत किया, पीले वस्त्र, पीला भोजन, केले के पौधे की पूजा और कथा सुनी। धीरे-धीरे उसके जीवन में समृद्धि लौट आई, राजा वापस मिला और परिवार सुखी हो गया।
इस प्रकार, बृहस्पति देव की कृपा से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
8. बृहस्पति देव की आरती
जय जय श्री गुरुदेव स्वामी, जय जय श्री गुरुदेव।
ज्ञान-भक्ति सुखदायक, संकट हारन देव॥
पीताम्बर धर श्याम सुन्दर, कर में पुस्तक धारण।
पूजत सुर-नर, मुनि-वर, जय जय कर बारम्बार॥
... (पूरी आरती गा सकते हैं)
9. प्रसाद व भोजन
व्रत वाले दिन—
- पीला भोजन (चना दाल, कढ़ी, मीठा चावल)
- नमक रहित भोजन भी रखा जा सकता है
- प्रसाद में केले, गुड़-चना या बेसन लड्डू बाँटें
10. शाम की पूजा
- दीपक पुनः जलाएँ
- एक छोटा-सा संकल्प—
“जो भी त्रुटियाँ हुई हों, भगवान क्षमा करें।” - आरती करें
- प्रसाद प्रसारित करें
11. क्या न करें
- इस दिन कपड़े न फाड़ें
- तेल से बनी चीज़ें न खाएँ
- नींबू, बैंगन, सरसों का प्रयोग न करें
- गुरुवार को घर की सफाई में झाड़ू न चलाएँ (मान्यता)
- पीपल/बरगद आदि वृक्ष न काटें
12. व्रत पूरा होने पर (उदयापन)
16 गुरुवार पूरे होने पर—
- केले के पौधे का पूजन
- ब्राह्मण को भोजन
- पीला वस्त्र, हल्दी-चावल दान
- कन्याओं को गुड़-चना और पीला वस्त्र
पौष दशमी व्रत: श्रद्धा और संकल्प का पर्व
