
जीवित्पुत्रिका व्रत (जीउतिया व्रत) विधि और लाभ
जीवित्पुत्रिका व्रत (जीउतिया व्रत) विधि और लाभ
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत विधि
- व्रत का समय – यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
- व्रत की शुरुआत – सप्तमी की रात से ही माताएँ निर्जला व्रत का संकल्प करती हैं।
- उपवास नियम – व्रती महिलाएँ अष्टमी को बिना जल और अन्न ग्रहण किए व्रत करती हैं।
- पूजन सामग्री – फल, फूल, धूप, दीप, कलश, दूर्वा घास, जल, नारियल, अखंड दीप, जीउतिया (मिट्टी या सोने की मूर्ति)।
- पूजन विधि –
- प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु, माता पार्वती और जीवित्पुत्रिका माता की पूजा करें।
- जीउतिया (जीवित्पुत्रिका माता) की प्रतिमा बनाकर या स्थापित कर पूजा अर्चना करें।
- कथा सुनें और संतान के दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
- व्रतधारी महिलाएँ अगले दिन (नवमी) व्रत का पारण करती हैं।
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत के लाभ
- संतान रक्षा – संतान पर आने वाले संकटों का निवारण होता है।
- दीर्घायु प्राप्ति – संतान दीर्घायु और स्वस्थ जीवन प्राप्त करता है।
- परिवार में सुख-शांति – घर-परिवार में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
- मातृ-भाव की शक्ति – यह व्रत मातृत्व के प्रेम और त्याग का प्रतीक है।
- पौराणिक मान्यता – इस व्रत से जीउतिया माता प्रसन्न होती हैं और संतान की रक्षा करती हैं।
- आध्यात्मिक लाभ – श्रद्धा से किया गया यह व्रत मन को शांति और आत्मबल प्रदान करता है।
👉 यह व्रत खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाता है।
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा जीमूतवाहन ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण नागराज की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। उनकी निष्ठा और त्याग से प्रसन्न होकर देवी माँ ने उन्हें वरदान दिया कि उनके नाम से किया जाने वाला व्रत करने वाली माताओं की संतान पर कोई संकट नहीं आएगा और वे दीर्घायु होंगी।
इसी कारण इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत कहा जाता है।
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
- माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।
- यह व्रत माँ के त्याग, धैर्य और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
- इसे करने से संतान पर अकाल मृत्यु और बड़े संकटों का प्रभाव कम हो जाता है।
- यह व्रत सामाजिक रूप से भी महिलाओं को एक-दूसरे से जोड़ता है क्योंकि सभी एक साथ उपवास और कथा श्रवण करती हैं।
🌸 विशेष बातें
- यह व्रत निर्जला उपवास होता है, यानी अष्टमी के पूरे दिन बिना जल और अन्न के रहना।
- सप्तमी को “नहाय-खाय” की परंपरा होती है, जिसमें विशेष भोजन कर उपवास का संकल्प लिया जाता है।
- अष्टमी को दिनभर पूजा-पाठ करके, नवमी की सुबह पारण (व्रत खोलना) किया जाता है।
- पारण में दही-चूड़ा, तरकारी और अन्य पारंपरिक भोजन ग्रहण किया जाता है।
👉 इस प्रकार जीवित्पुत्रिका व्रत मातृत्व की शक्ति, संतान की रक्षा और परिवार के कल्याण का प्रतीक है।
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन सामग्री सूची
- कलश (जल व आम्रपल्लव से युक्त)
- सुपारी, रोली, मौली, अक्षत (चावल)
- दीपक और घी/तेल
- अगरबत्ती/धूप
- फूल व माला
- दूर्वा घास (विशेष रूप से आवश्यक)
- जीउतिया की प्रतिमा (सोना, चाँदी, पीतल, मिट्टी या दूब से बनाकर)
- नारियल
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची
- फलों का थाल (केला, अमरूद, सेव, नारियल आदि)
- सिंदूर व चूड़ी
- रक्षासूत्र
- गंगाजल
- कथा पुस्तक या जीवित्पुत्रिका कथा की पांडुलिपि
- अखंड दीप के लिए मिट्टी का दीपक
🌸 जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि व उपाय
- स्नान व शुद्धि – अष्टमी के दिन प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें।
- स्थान शुद्धि – पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कें और कलश स्थापना करें।
- दीप प्रज्वलन – अखंड दीपक जलाकर देवी जीवित्पुत्रिका की पूजा आरंभ करें।
- प्रतिमा स्थापना – दूर्वा घास, मिट्टी या धातु से बनी जीउतिया माता की प्रतिमा स्थापित करें।
- पूजन क्रम –
- फूल, चावल, रोली, सिंदूर चढ़ाएँ।
- नारियल, फल, मिठाई अर्पित करें।
- दूर्वा घास अर्पित करना विशेष आवश्यक है।
- कथा श्रवण – जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का श्रवण करें।
- संकल्प – संतान की दीर्घायु व सुरक्षा का संकल्प लें।
- आरती – दीपक और धूप से माता की आरती करें।
- उपवास नियम – पूरे दिन निर्जल उपवास करें और नवमी को पारण करें।
- पारण विधि – अगले दिन (नवमी) को दही-चूड़ा, तरकारी और प्रसाद से व्रत का समापन करें।
👉 इस प्रकार पूजा करने से संतान की रक्षा, लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
प्राचीन काल में वीरबाहु नामक राजा का राज्य था। उसकी पत्नी मालिनी के कोई संतान नहीं थी। वर्षों तक संतान सुख न मिलने पर वह अत्यंत दुखी रहती थी।
एक दिन राजा ने महर्षियों से उपाय पूछा तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और समय आने पर उसने पुत्र को जन्म दिया।
लेकिन संयोग से वह पुत्र मृत पैदा हुआ। यह देख रानी विलाप करने लगी। उसी समय वहाँ से एक ब्राह्मणी स्त्री गुजरी। वह दरअसल जीवित्पुत्रिका माता का स्वरूप थी। उसने रानी से कहा –
“यदि तुम मेरी पूजा कर व्रत रखो तो तुम्हारे पुत्र को जीवन मिल जाएगा।”
रानी ने श्रद्धापूर्वक जीवित्पुत्रिका व्रत किया। माता की कृपा से उसका पुत्र जीवित हो उठा। तभी से यह व्रत माताओं द्वारा संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए किया जाने लगा।
कथा का संदेश
- माँ की सच्ची भक्ति और तप से असंभव भी संभव हो जाता है।
- संतान चाहे कितने भी संकट में क्यों न हो, यह व्रत उसकी रक्षा करता है।
- यह व्रत मातृत्व के त्याग और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है।
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